मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

विकृत होती पंथनिरपेक्षता

श्री तरुण विजय द्वारा लिखित यह लेख दैनिक जागरण दिनांक १९ अक्टूबर २००९ ,न्यू दिल्ली एडिशन में प्रकाशित हुआ है । उन्होंने जम्मू कश्मीर में जारी आतंकवाद और श्रीमती आँचल के विषय में बहुत अच्छे एवं आँखें खोलने वाले अपने विचार प्रस्तुत किए हैं । शायद उनका लिखना सच ही है किभारतीय शासन और राजनीति में व्याप्त सेक्युलर विद्रूपता हिंदू हनन को ही अपनी पहचान बना बैठे हैं ।
उल्लेखनीय है की दुनिया में जहाँ भी मुस्लिम अल्प संख्यक होते हैं, वहा वे अपने लिए विशेष अधिकार और मज़हबी कानून आदि की मांग करते हैं,परंतु जहाँ वे बहुसंख्यक होते है ,वंहा गैर मुस्लिम समाज के लोगो के अधिकार समाप्त कर देते हैं और उनकी आस्था एवं जीवन शैली की स्वतंत्रता को कुचलदेते हैं ।
समय की पुकार है की देश की अखंडता को बनाये रखने के लिए जम्मू कश्मीर को दिए गए विशेष अधिकार समाप्त कर अन्य प्रदेशों की भांति समान संहिता लागू की जाए, और भी अच्छा ये होगा कि नासूर बन गए पाक अधिकृत कश्मीर को पाकिस्तान से वापस ले लिया जाए और आतंकवाद के पर्यायवाची पाकिस्तान को हमेशा हमेशा के लिए नेस्तनाबूद कर दिया जाए।
मगर ये हमारा दुर्भाग्य है की हमारे नेताओं में न तो इच्छा है और ना ही इतनी शक्ति की वे देश में सही मायनों में पंथ निरपेक्षता स्थापित कर सकें और देश के अन्दर पनपते गद्दारों व बाहरी दुश्मनों को मुंह तोड़ जवाब दे सकें।
- डॉ. राकेश मिनोचा

2 टिप्‍पणियां:

  1. "ये हमारा दुर्भाग्य है की हमारे नेताओं में न तो इच्छा है और ना ही इतनी शक्ति की वे देश में सही मायनों में पंथ निरपेक्षता स्थापित कर सकें और देश के अन्दर पनपते गद्दारों व बाहरी दुश्मनों को मुंह तोड़ जवाब दे सकें।"

    आपका कहना बिल्कुल सत्य है। प्रजातन्त्र का यह निकृष्ट पहलू है।

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  2. अच्छा लेख ....!!

    समय के साथ विवाह की बदलती परिभाषा भी अच्छी लगी .....!!

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