बुधवार, 23 सितंबर 2009

आरक्षण-ईश्वरीय व्यवस्था पर एक प्रश्न चिन्ह

कहतेहैं ईश्वर इस सृष्टि का उत्त्पत्तिकर्ता एवं पालनकर्ता है, वो न्यायकर्ता भी है। वो इंसान को जब पैदा करता है तो किसी के साथ जात पात को ध्यान में रखकर भेद भाव नही करता। सभी धर्म शास्त्रों में भी लिखा है कि कोई जन्म से हिंदू, मुसलमान, क्षत्रिय, क्षुद्र, वैश्य, ब्रह्मण इत्यादि नही होता, ये तो हम इंसान ही उसे ये नाम दे देते हैं।

वो पैदा करने वाला हाथ, पैर,आँखें ,मस्तिष्क आदि अंग जात पात के हिसाब से नही बांटता, तभी तो कहा गया है की कर्म प्रधान है, जो जितना जिसे इस्तेमाल करता है, वो अंग उतना ही मज़बूत एवं तेज़ होता है।

अब मैं बात करना चाहूँगा आज के हमारे भारत की जहाँ आरक्षण के नाम पर कुछ लोगों को जबरदस्ती पंगु बनाया जा रहा है और बहुत से मेहनती, लायक लोगों को निराशा जनित कुंठा का शिकार। वोट बैंक की राजनीती के चक्कर में हमारे लायक नेता संविधान में आरक्षण के प्रावधान और उसे कैसे समय बद्ध तरीके से ख़त्म करना है, को भूलकर जान बूझकर अपनी नेतागिरी चमका रहें हैं। वो ये भी ज़रूर जानते हैं कि अब आरक्षण का फायदा पहले से लाभान्वित परिवार ही ज़्यादा उठा रहे हैं।

ये बन्दर बाँट, वोटों की राजनीती बंद करके गंभीरता पूर्वक देश के चलानेवालो को सोचना चाहिए कि काबिल व्यक्ति किसी भी जात पात का नही होता, वो देश की धरोहर होता है, उसे बढ़ावा मिलना ही चाहिए, न कि आरक्षण के कारण कुंठा ग्रस्त जीवन या आत्महत्या की मजबूरी।

आरक्षण से अच्छा हो अगर जो बच्चे किसी भी कारण वश पढने में असमर्थ हैं, सरकार उन्हें पढने की आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराये, न कि उन्हें आरक्षण के नाम पर जबरदस्ती आगे लाकर देश को पीछे ले जाए।

आरक्षण के नाम पर ये बँटवारा तो भगवान् की नियत पर भी शक पैदा करता है, जो उसे भी कदापि पसन्द नही होगा ।

- डॉ राकेश मिनोचा

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