1947
देश का बटवारा
लाखों लोग
विस्थापित
लाखों मारे
गए
गाँधी तुम
कातिल
हो
गाँधी तुम
कातिल
हो
सीमा के उस पार
मारे
गए
सिर्फ़ उनके
नही
सीमा के इस पार
आए
उनके भी
क्योंकि बिना
जड़ों
के
वृक्ष कहीं
खोखला
हो
जाता
है
फिर भी
सतत् पर्यतनो
से
वो सिर
उठाए
खड़े
हैं
अपने पुरखों
की
मिट्टी
की
खुश्बू
लिए
वो गर्व
से
आज भी
अकेले ज़िंदा
हैं
मगर अफ़सोस
की
तुम
रक्त बीज
की
तरह
छदम धर्म
निरपेक्ष
सत्ता
लोलुप
व्यक्तियों की
भीड़
मैं
आज भी मौजूद
हो
एक और बटवारे
के
लिए
अब जो बटी
यह
धरती
दोष तुम्ही
पे
आएगा
सोच नेहरू
व
जिन्ना की
को भी ज़िम्मेदार
ठहराया
जाएगा
गाँधी कब तक
भागो गे
सत्य व
ज़िम्मेदारी
से
एक बार
तो
कर
लो
कबूल
कह दो
हाँ मैं कातिल
हूँ
हाँ मैं
कातिल
हुँ
राकेश मिनोचा
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