रविवार, 17 अगस्त 2014

Gandhi

1947
देश का बटवारा
लाखों  लोग  विस्थापित
लाखों   मारे  गए
गाँधी  तुम  कातिल  हो
गाँधी  तुम  कातिल  हो
सीमा  के  उस  पार  मारे  गए
सिर्फ़  उनके  नही
सीमा  के  इस  पार  आए
 उनके  भी
क्योंकि  बिना  जड़ों  के
 वृक्ष  कहीं  खोखला  हो  जाता  है
फिर  भी
सतत्  पर्यतनो  से
 वो  सिर  उठाए  खड़े  हैं
अपने  पुरखों  की  मिट्टी  की  खुश्बू  लिए
 वो  गर्व  से आज  भी
अकेले  ज़िंदा  हैं
मगर  अफ़सोस  की  तुम
रक्त  बीज  की  तरह
छदम  धर्म  निरपेक्ष  सत्ता  लोलुप
व्यक्तियों  की  भीड़  मैं
 आज  भी  मौजूद  हो
 एक  और  बटवारे  के  लिए
अब  जो  बटी  यह  धरती
दोष  तुम्ही  पे  आएगा
सोच  नेहरू   जिन्ना  की
 को  भी  ज़िम्मेदार  ठहराया  जाएगा
 गाँधी कब तक भागो गे
सत्य    ज़िम्मेदारी  से
एक  बार  तो  कर  लो  कबूल
कह  दो
हाँ मैं कातिल हूँ
हाँ  मैं  कातिल  हुँ

राकेश मिनोचा

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